Sunday, December 10, 2017

अमलतास....श्वेता मिश्र


छुवन तुम्हारे शब्दों की 
उठती गिरती लहरें मेरे मन की 
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास 
साक्षी बन खड़ा है 
मेरे आँगन का ये 
अमलतास......
गुच्छे बीते लम्हों की 
तुम और मैं धार समय की 
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले 
धूप में ठंडी छाया 
नहीं मुरझाया 
मेरे आँगन का 
अमलतास..........
सावन मेरे नैनों का 
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का 
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल 
स्नेह भर आँखों में 
फिर मुस्काया मेरे आँगन का 
अमलतास............

-श्वेता मिश्र

Saturday, December 9, 2017

अहसास....डॉ. सरिता मेहता

इक सहमी सहमी आहट है
इक महका महका साया है।
अहसास की इस तन्हाई में,
ये साँझ ढले कौन आया है।

ये अहसास है या कोई सपना है,
या मेरा सगा कोई अपना है।
साँसों के रस्ते से वो मेरे,
दिल में यूँ आ के समाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......

गुलाब की पांखुड़ी सा नाज़ुक,
या ओस की बूँदों सा कोमल।
मेरे बदन की काया को,
छू कर उसने महकाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......

शीतल चन्दा की किरणों सा,
या नीर भरी इक बदरी सा।
जलतरंग सा संगीत लिए,
जीवन का गीत सुनाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......
-डॉ. सरिता मेहता

Friday, December 8, 2017

ये जर जर हवेली.....कुसुम कोठारी


जर जर हवेलियां भी
संभाले खडी है
प्यार की सौगातें
कभी झांका था
एक नन्हा अंकुर
दिल की खिडकी खोल
संजोये रखूंगी प्यार से
जब तक खुद न डह जाऊंगी 
ये जर जर हवेली
ना भूलेगी कभी
वो कोमल छुवन
वो नरम पवन
जो छू के उसे
छूती थी उसे
एक नन्हे के
कोमल हाथों जैसा
अहसास ना भूलेगी
ये जर जर हवेली ।
-कुसुम कोठारी 

Thursday, December 7, 2017

तेरी सदा पे मुझे लौटना पड़ा....आलोक यादव

आँखों की बारिशों से मेरा वास्ता पड़ा
जब भीगने लगा तो मुझे लौटना पड़ा 

क्यों मैं दिशा बदल न सका अपनी राह की 
क्यों मेरे रास्ते में तेरा रास्ता पड़ा 

दिल का छुपाऊँ दर्द कि तुझको सुनाऊँ मैं 
ये प्रश्न एक बोझ सा सीने पे आ पड़ा

खाई तो थी क़सम कि न आऊँगा फिर कभी 
लेकिन तेरी सदा पे मुझे लौटना पड़ा

किस - किस तरह से याद तुम्हारी सताए है 
दिल जब मचल उठा तो मुझे सोचना पड़ा

वाइज़ सफ़र तो मेरा भी था रूह की तरफ़ 
पर क्या करूँ कि राह में ये जिस्म आ पड़ा 

अच्छा हुआ कि छलका नहीं उसके सामने 
‘आलोक’ था जो नीर नयन में भरा पड़ा
- आलोक यादव


Wednesday, December 6, 2017

केंचुए ....मंजू मिश्रा


काट दिये पर 
 सिल दी गयीं जुबानें 
और आँखों पर पट्टी भी बाँध दी
इस सबके बाद दे दी हाथ में कलम 
कि लो अब लिखो निष्पक्ष हो कर 
तुम्हारा फैसला जो भी हो 
बेझिझक लिखना 
-:- 
 गूंगे बहरे लाचार 
आपके रहमो करम पर जिन्दा लोग 
क्या मजाल कि जाएँ आपके खिलाफ 
ऐसी जुर्रत भी करें हमारी मति मारी गई है क्या 
हुजूर माई बाप आप की दया है तो हम हैं 
आप का जलवा सदा कायम रहे और
हमारे कांधों पर पाँव रख कर 
आप अपना परचम लहरायें 
विश्व विजयी कहलाएँ 
-:-
हम तो बस
 सदियों से यूँ ही  
तालियाँ बजाते आये हैं 
 आगे भी वही करेंगे राजा चाहे जो हो  
हमें क्या, भूखे प्यासे रोयेंगे तड़पेंगे 
मगर राजा की जय बोलेंगे  
और हक़ नहीं भीख के 
टुकड़ों पर पलेंगे 
-:-
जब जी चाहे 
पुचकारो मतलब निकालो 
फिर गाली दे कर हकाल दो 
हम इंसान कहाँ कुत्ते हैं 
दर असल हम कुत्ते भी नहीं 
वो भी कभी कभी भौंक कर काट लेते हैं
हम तो उस से भी गये गुजरे
रीढ़ विहीन, शायद
केंचुए हैं
-:-


Tuesday, December 5, 2017

कैसे-कैसे गिले याद आए.....ख़ुमार बाराबंकवी

वो सवा याद आये भुलाने के बाद 
जिंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद 

दिल सुलगता रहा आशियाने के बाद 
आग ठंडी हुई इक ज़माने के बाद 

रौशनी के लिए घर जलाना पडा 
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बाद 

जब न कुछ बन पड़ा अर्जे-ग़म का जबाब 
वो खफ़ा हो गए मुस्कुराने के बाद 

दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है 
दोस्तों का खुलूस आज़माने के बाद 

बख़्श दे या रब अहले-हवस को बहिश्त 
मुझ को क्या चाहिए तुम को पाने के बाद 

कैसे-कैसे गिले याद आए "खुमार" 
उन के आने से क़ब्ल उन के जाने के बाद
-ख़ुमार बाराबंकवी

Monday, December 4, 2017

ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी....कुसुम सिन्हा

हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी

ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी

फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी

यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी
-कुसुम सिन्हा