निमिष मात्र में
गगन घट
छलक गए
बिखरे
हल्के रंग
अबीर से सृष्टि के/
सबसे सुखद
जश्न की बारी है।
घन के साथ
घनिष्ठ
बौराई-सी आम्र बौर
झूमकर
फल उठी/
पंछियों के घरौंदे
कुछ और/
घने बस गए
तरुवर की शाखों पर।
लहकी/महकी सी लताएं
लिपट-लिपट
झूम-झूम
देने लगी थाप
बूंदो की ताल पर/
रंगीन कहानियां
बनने लगी
मौसम के राग पर/
नवोन्मेष
पल-पल में
पात-पात पर
-अनुपमा अनुश्री
रसरंग से
पावस ऋतु का मनमोहक चित्रण
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteउम्दा/बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया आज देखी मैंने यह कविता मेरी इस ब्लॉग साइट पर।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteधन्यवाद
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