धूप को सलाम है,है छांव को सलाम
छोड़ जो आए हरेक गाँव को सलाम
निःस्वार्थ समर्पित है सेवार्थ सभी के
तपते रास्तों के नंगे पाँव को सलाम
लहरों को नमन प्रणाम आँधियों को
मंझधार में डूबी उस नाव को सलाम
टीस ने जो गीत बुने आपका आभार
जख्मों से उपजे हुए धाव को सलाम
मन्दिर ओ मस्जिद नहीं बस्तियाँ जलाते
सुलगे हुए महजबी अलाव को सलाम
उँची सियासती कद को है मेरे आदाब
आदमी के गिरते हुए भाव को सलाम
-विनोद प्रसाद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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