मेरी आँखों मे रहता है, मगर गिरता नहीं...
अजब बादल बरसता है, मगर घिरता नहीं...
मेरे टूटे हुए घर में, बड़ी हलचल सी है...
कोई इक दौर रहता है, कभी फिरता नहीं...
बड़ी अंजान नज़रों से मुझे बस घूरता है...
मेरा ही अक्स मुझसे आजकल मिलता नहीं...
ज़ख़्म उधड़ा हुआ बतला रहा है आज ये...
जमाना नोचता है बस, कभी सिलता नहीं...
किसी को दे भी दो दिल चुभता बहुत है...
वो इक काँटा है, जो कभी खिलता नहीं....
वही सड़क, वही गलियाँ, वही मौसम मगर...
खोया सा कुछ है, जो मुझे मिलता नहीं...
सुनाऊं क्या बताओ महफ़िलों में मैं उसे...
शेर मेरा मुझे ही आजकल झिलता नहीं...
बड़ी अंजान नज़रों से मुझे बस घूरता है...
ReplyDeleteमेरा ही अक्स मुझसे आजकल मिलता नहीं...
वाह!!!
लाजवाब।
सुन्दर रचना
ReplyDelete