मदमस्त हवाओ से भरा
ये मेरा शहर
आज मेरे लिए ही बेगाना क्यू है
हर तरफ
महकते फूल, चहकते पंक्षी
फिर मुझे ही
झुक जाना क्यू है
आज फिर इक चुप्पी सी साधी है
इन हवाओ ने,
मेरे लिए
नहीं तो कोई,
दूर फिजाओ में जाता क्यू है
छुपा रहा है
हमसे कोई राज, ये पवन
नहीं तो और भी है,
इसकी राहों में
ये इक हमी को तपाता क्यू है
आज बड़ा खुदगर्ज, बड़ा मगरूर
सा लगता है ये मेरा शहर
शायद इसकी मुलाकात हुई है 'उनसे'
नहीं तो ये हमी को जलाता क्यू है
ए 'अमर' जरूर, रसूख
कुछ कम हुआ है शायद
वरना ये अपना हुनर
हमी पे दिखाता क्यू है !!
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete