उठते ही घर ठीक करेगी
माँ फिर बिस्तर ठीक करेगी
चावल हमें खिला देने को
कंकड़ पत्थर ठीक करेगी
गिन के सिक्के चार दफ़ा में
फिर ख़ुद छप्पर ठीक करेगी
धुंआ धुंआ इस घर को कर के
कितने मच्छर ठीक करेगी
इस ज़िद पे हैं काहिल बेटे
माँ ही खण्डहर ठीक करेगी
सबने छोड़ दिए हैं कपडे
माँ है नौकर ठीक करेगी
नहीं वो देगी गन्दा रहने
लेकर पेपर ठीक करेगी
हमें पता है इन तिनकों से
नाक का बेसर ठीक करेगी
देहरी पर भी जाना हो तो
सर का आंचर ठीक करेगी
हो जितना दुःख फिर भी माँ तो
तुलसी खाकर ठीक करेगी
- डॉ. जियाउर रहमान जाफ़री
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-10-2018) को "मैं तो प्रयागराज नाम के साथ हूँ" (चर्चा अंक-3123) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteएकदम...माँ का स्मरण हो गया। शुभकामना। ऐसी ही और रचना लिखते रहिए।
ReplyDeleteआप सबका उत्साहवर्धन के लिए आभार. ..... Jafri
ReplyDeleteवाह!!बहुत सुंदर !!
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