मेरी शोहरत उड़ान तक पहुँची
फिर अना भी उफान तक पहुँची
बोझ घर का जो उम्र भर ढोया
ज़िंदगी अब थकान तक पहुँची
अब न दूंगा उधार लिक्खा था
मुफलिसी जब दुकान तक पहुँची
मैं बुरा था कसूर घर का क्या
बात जो खानदान तक पहुँची
खौफ पाया अँधेरों' का दिल में
तीरगी जब मकान तक पहुंचा
जिक्र उसका हो शायरी में जब
वो ग़ज़ल आसमान तक पहुँची
नफरतों का शरर उठा कैसे
आग हिन्दोस्तान तक पहुँची
फ़ैली अफवाह रफ्ता रफ्ता वो
बात जब थी जुबान तक पहुँची
बात घर की रही नहीं घर की
घर से निकली जहान तक पहुँची
पाँव उखड़े नहीं जमीं से भी
जब थी मैं आसमान तक पहुंची
तब तो लगता कसूर आशिक का
जब मुहब्बत ही जान तक पहुँची
- निर्मला कपिला
उम्दा बेहतरीन अस् आर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-02-2017) को "साहित्यकार समागम एवं पुस्तक विमोचन"; चर्चामंच 2872 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !!! बहुत सुंदर शब्दों से सजी
ReplyDeleteनायाब प्रस्तुती
वाह !!! बहुत सुंदर शब्दों से सजी
ReplyDeleteनायाब प्रस्तुती