शब्दों की चहलकदमी से
आहटें आती रहीं
सन्नाटे को चीरता
एक शोर
कह जाता कितना कुछ
मौन ही !
बिल्कुल वैसे ही
मेरी खामोशियाँ आज भी
तुमसे बाते करती हैं
पर ज़बां ने खा रखा है
चुप्पी का नमक
कुछ भी कहने से
इंकार है इसे
जाने क्यूँ !!!
-सीमा सदा सिंघल
......फेसबुक से
वाह !!! बहुत खूबसूरत शब्द और रचना
ReplyDeleteआभार आपका 😊💐
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