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तुम कहते हो
मैं जिद्दी हूँ
और थोड़ी सी
हूँ मनचली ...
हाँ , मैं हूँ
स्वीकार है मुझे
मैं जिद्दी हूँ
थोड़ी सी मनचली भी ........
जब भी माँगा ,
जो कुछ भी माँगा
सब कुछ प्यार से
दिया तुमने ......
चांद , सितारे गर
माँग भी लेती
शायद लेकर आते
जी जान लगाकर भी .........
इतना प्यार
क्यों लुटाते हो
प्यार का मतलब
क्या जानते भी हो ?..
प्यार आवारगी नहीं
न सिर्फ़ है दीवानगी
प्यार बंदगी भी है
और है इबादत भी .........
चलो न , आज
अभी , इसी वक्त
हम , तुम कर लेते
हैं एक वादा ....
गर कभी साथ छूटे तो
बनकर रहना कृष्ण मेरे
राधा बन सताऊंगी नहीं
बन सकती हूँ जोगन मीरा भी ....
-चंचलिका शर्मा
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteप्यार बंदगी भी
ReplyDeleteऔर है इबादत भी....
सुन्दर...।
बहुत सुंदर !
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