हमने उन्हें महत्वाकांक्षाएं तो दीं
परंतु धैर्य छीन लिया..
उनकी आंखों में ढेरों सपने तो बोये
पर नींदे छीन लीं..
हमने उन्हें हर परीक्षा के लिए तैयार किया
परंतु परीक्षा के परे की हर खुशी छीन ली..
हमने किताबी ज्ञान खूब उपलब्ध कराया
परंतु संवेदनायें छीन लीं..
हमने उन्हें प्रतिद्वंदी बनाया
पर संतुष्टि छीन ली..
हमने उन्हें तर्क करना सिखाया
परंतु आस्थायें छीन लीं..
हमने उन्हें बार बार चेताया
और विश्वास छीना..
हमने उन्हें उड़ना सिखाया
और पैरों के नीचे से जमीन छीन ली..
सच !!
हम सा लुटेरा अभिभावक पहले न हुआ होगा..
~निधि सक्सेना
सच ।
ReplyDeleteसच.. बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteहमने उन्हें उड़ना सिखाया
ReplyDeleteऔर पैरों के नीचे से जमीन छीन ली..
सच !!
हम सा लुटेरा अभिभावक पहले न हुआ होगा..
सही है
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-10-2017) को
ReplyDelete"मोहब्बत बस मोहब्बत है" (चर्चा अंक 2766)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सटीक रचना
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