हर जीव की ज़िंदगी है प्रकृति
एक प्यारी डोर है प्रकृति
ये डोर कहीं टूट ना जाए
ये अनर्थ कभी होने ना पाये
कभी ज़िंदगी संवारने का
तो कभी बिगाड़ने का
कभी फूलों को महकाने का
तो कभी भूकंप से डराने का
हमने तेरे हर रूप को है देखा
और बस यही है सीखा
तेरा हर रूप निराला है
तू ही हमारी ज़िंदगी का सहारा है
- रुजुला शर्मा
सुंदर। वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-09-2017) को रजाई ओढ़कर सोता, मगर ए सी चलाता है; चर्चामंच 2739 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपको सपरिवार शुभ पर्व की मंगलकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDelete