Thursday, May 12, 2016

हर बूंद नगीना हो................वज़ीर आग़ा

सावन का महीना हो
हर बूंद नगीना हो

क़ूफ़ा हो ज़बां उसकी
दिल मेरा मदीना हो

आवाज़ समंदर हो
और लफ़्ज़ सफ़ीना हो

मौजों के थपेड़े हों
पत्थर मिरा सीना हो

ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो

आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो

- वज़ीर आग़ा 
क़ूफ़ा--ऐसा शहर जहाँ झूठे लोग रहते हैं ....
सफ़ीना - समंदर का काफिला जैसे पानी का जहाज
मिरा - मेरा, करीना - तरीका
दफ़ीना - ज़मीन के अन्दर गढ़ा हुआ खजाना

14 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 13/05/2016 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  2. बहुत सुन्दर

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