1933-1975
आज लौटते दफ्तर से पथ पर कब्रिस्तान दिखा
फूल जहां सूखे बिखरे थे और चिराग टूटे-फूटे
यों ही उत्सुकता से से थोड़े फूल बटोर लिए
कौतुहलवश एक चिराग़ उठाया औ' संग ले आया।
थोड़ा सा जी दुखा, कि देखो, कितने प्यारे फूल
कितनी भीनी, कितनी प्यारी होगी इसका गंध कभी
सोचा, ये चिराग़ जिसने भी यहां जलाकर रक्खे थे
उसके मन में होगी कितनी पीड़ा स्नेह-पगी।
तभी आ गई गंध न जाने कैसे सूखे फूलों से
घर के बच्चे 'फूल-फूल' चिल्लाते आए मुझ तक भाग
मैं क्या कहता आखिर उस हक़ लेनेवाली पीढ़ी से
देने पड़े विवश होकर वे सूखे फूल, उदास चिराग़।
दुष्यंत कुमार
1933-1975
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बिजय बाबू, बैंक और बेहद बुरी ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteBahut bahut dhanyvad
ReplyDeleteआप सभी लोगो की ब्लॉग से प्रेरित होकर हमने भी सरकारी नौकरियो की जानकारी एक वेबसाइट शुरू की है आशा है की आप सभी को पसंद आयेगी
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