![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH2aCiqG0vSlhf95CYGFqhc_lVUvu7hTmW9oYwla_VNeBKA4O9obXWcJ1018I0yoJY-2iubd9DTfrAF3VEWcGAJSoRiummW0VS49dXja3F08P8f0W3ZzOn1tomkdoUKUMxfLvwjrnbWIY/s1600/%E0%A4%AD%E0%A5%80%E0%A4%97%E0%A5%80+%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A4+%E0%A4%AA%E0%A4%B0.jpg)
कल हारे, संमुदर किनारे,
सुरमई शाम में,
झंझोड़ उलझे आस्तित्व को,
बिखरा दीं मैनें अपनी जुल्फें,
बिछा दिये आतुर नैन,
मांगी, तेरे लिये इक दुआ,
फिर देर तक सन्नाटे में,
कुछ भी न था,
कहने को, करने को, सोचने को,
भीगी रेत पर, झुंझला के, ऐसे में,
जैसे लिखा था तूनें......
मैनें अपना नाम लिखा.......
-जै बांवरा
http://kehnedoaajmujhe.blogspot.in/2007/11/blog-post_6029.html
मन को छूती बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-08-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1698 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
बेहतरीन ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteबेहतरीन ...रचना,,,,सुंदर
ReplyDelete