सीना जो खंजरों को नहीं पीठ ही सही
तुम दोस्त हो हमारे बताओ सही सही
इतना ही कह के बुझ सा गया आख़री चराग़,
इन आंधियों के साथ यही दोस्ती सही
आते ही रौशनी के नज़र आये बहते अश्क
इससे तो मेरे साथ वही तीरग़ी सही
सोचा था हमने आज सवारेंगे वक्त को
अब हाथ में है ज़ुल्फ़ तो फिर ज़ुल्फ़ ही सही
बातें करोगे अम्न की बलवाइयों के साथ?
तुम पर भी ऐसे में ये निपोरेंगे खीस ही
हमने किया सलाम तो होगा कोई तो काम
‘अच्छा ये आप समझे हैं अच्छा यही सही’
सोते हैं दर्द में ही हम इतने सकून से,
रातों में जाग जाग के हमने ख़ुशी सही
-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’
तुम दोस्त हो हमारे बताओ सही सही
इतना ही कह के बुझ सा गया आख़री चराग़,
इन आंधियों के साथ यही दोस्ती सही
आते ही रौशनी के नज़र आये बहते अश्क
इससे तो मेरे साथ वही तीरग़ी सही
सोचा था हमने आज सवारेंगे वक्त को
अब हाथ में है ज़ुल्फ़ तो फिर ज़ुल्फ़ ही सही
बातें करोगे अम्न की बलवाइयों के साथ?
तुम पर भी ऐसे में ये निपोरेंगे खीस ही
हमने किया सलाम तो होगा कोई तो काम
‘अच्छा ये आप समझे हैं अच्छा यही सही’
सोते हैं दर्द में ही हम इतने सकून से,
रातों में जाग जाग के हमने ख़ुशी सही
-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’
ज़ुल्फ़ ही संवारना आसान रह गया है तो
ReplyDeleteसंग्रहणीय रचना
हार्दिक शुभकामनायें
aabhar aapka
Deleteबढिया
ReplyDeleteshukriya...bahut bahut aabhar
Deleteसीना जो खन्जर को नहीं पसेमाँ ही सही..,
ReplyDeleteमिले न बादे-वफ़ा दर्द का तूफाँ ही सही..,
यूँ कहकर बूझ सा गया आखरी चिराग़..,
पेशानी-ख़त में तारीके-आसमाँ ही सही.....
kahin ziyada khubsoorat..bahut khoob
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteaabhar..ashirvaad banaye rakhe'n
Deletebahut bahut aabhar yashoda ji..shukraguzar hun
ReplyDeletebahut abhut aabhar apka...
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