नभ में उड़ा जा रहा हूं
एक यायावर मेघपुंज हूं।
नीचे धरती का विस्तार,
ऊपर नीला गगन विशाल,
सृष्टि की रचना से विस्मित,
प्रभु का देखूं रूप विराट।
मैं हूं श्यामल जलागार,
बरसाऊं शीतल फुहार,
विद्युत मेरा अलंकार,
ध्वनि से कर दूं चमत्कार,
कभी वर्षा करूं कभी हिमपात,
कभी करूं मैं वज्रपात।
विरही का मैं मेघदूत,
चातक की मैं आशा,
मुझे देख नाचे मयूर,
सबकी बुझे पिपासा।
नभ में उड़ा जा रहा हूं,
एक यायावर मेघपुंज हूं।
- हर नारायण शुक्ला
Nice Symphony of creative thoughts.
ReplyDeleteएक यायावर मेघपुंज-----बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteआदरणीया, बेहतरीन रचना के लिए अनेकों बधाई !
ReplyDeleteहर नारायण शुक्ला जी की सुन्दर रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना...
ReplyDelete:-)