जिन्हें याद करते हैं हम बस यूँ ही सदा
उन्हें मेरी भी चाहत हो ज़रूरी तो नहीं
फ़लसफ़ा मेरी मोहब्बत का मशहूर हो जहाँ
उस महफ़िल में मेरा नाम आए ज़रूरी तो नहीं
सिर्फ़ फूल हों तेरी राह में है मेरी बस दुआ
एक सी हम दोनों की फ़रियाद हो ज़रूरी तो नहीं
तमन्ना दिल में मेरे कई ख़्वाब जगा देती है
मगर किस्मत भी साथ मेरे दे ज़रूरी तो नहीं
मुस्कुरा के भी होते हैं बयाँ हाल इस दिल के
मुझ को रोने की भी आदत हो ज़रूरी तो नहीं
---रिकी मेहरा
ब्लाग "धरोहर" से
http://yashoda4.blogspot.in/2012/03/blog-post_31.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (26-07-2013) को खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना: चर्चा मंच 1318 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल......
ReplyDeleteवाह |रिकी जी,बेहतरीन लेखन .....
ReplyDeleteवाह .... बेहतरीन
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