उसको अपना बना के देखा, कर देखा बेगाना भी
जिस गुलशन को शाद किया था किर बैठे वीराना भी
हमने अपने चमन में देखे एक मौसम के दोनों रंग
एक पल में कुछ कलियाँ खिलना एक पल में मुरझाना भी
मन की व्याकुल इच्छाओं का बोलो क्या अंजाम लिखूं
छहूँ तेरे पास ठहरना और सफ़र पर जाना भी
दिल चाहे अब लिखते रहना हर धड़कन पर उसका नाम
उसकी खातिर जिंदा रहना उसके लिए मार्जन भी
एक खुदा की नेमत खोना रस्मे दुनियां की खातिर
बहुत कठिन है यूँ ज़न्नत को पाना भी ठुकराना भी..!!
---अज्ञात(कृपया नाम बताएं)जिस गुलशन को शाद किया था किर बैठे वीराना भी
हमने अपने चमन में देखे एक मौसम के दोनों रंग
एक पल में कुछ कलियाँ खिलना एक पल में मुरझाना भी
मन की व्याकुल इच्छाओं का बोलो क्या अंजाम लिखूं
छहूँ तेरे पास ठहरना और सफ़र पर जाना भी
दिल चाहे अब लिखते रहना हर धड़कन पर उसका नाम
उसकी खातिर जिंदा रहना उसके लिए मार्जन भी
एक खुदा की नेमत खोना रस्मे दुनियां की खातिर
बहुत कठिन है यूँ ज़न्नत को पाना भी ठुकराना भी..!!
प्रस्तुतिकरणः सोनू अग्रवाल
बहुत सुंदर गज़ल है यशोदा जी....
ReplyDeleteटंकण की कुछ गलतियाँ ठीक कर लीजिए.
किर,छहूँ,मार्जन