Saturday, December 3, 2011

मेड़ पर पसरा रूदन है इन दिनों................विनय प्रकाश जैन ‘नीरव’

दूर होती मंजि़लें
यात्रा कितनी कठिन है
इन दिनों
मज़बूरियों से
लड़ रहे हैं लोग
गढ़ता आंख में सपना
हर खुशी
एक हादसा
त्यौहार दुर्घटना
पपड़ायें हुये हैं होंठ
माथे पर शिकुन है
इन दिनों
हाथ उठते भीड़ में
कुछ तालियां हैं
और कुछ नारे
बाकी सभी बुत की तरह
बैठे हुये हैं
थके-हारे
चिन्ह शुभ भी
अपशकुन हैं
इन दिनों
अतिक्रमण पानी हवा पर
क्या हुआ है
गांव में
अब न पहले से
थिरकते धूप के घुंघरू
किरण के पांव में
खलिहान में लपटें
मेड़ पर पसरा रूदन है
इन दिनों
प्रस्तुत कर्ता--अमितेष जैन

2 comments:

  1. दिल को छू लेने वाली रचना आभार.....
    (कृपया वर्ड वैरिफिकेसन हटा दीजिये)

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