Thursday, September 27, 2018

मन के भी तो कितने हैं रंग....देवयानी


हरे के कितने तो रंग हैं
एक हरा जो पेड की सबसे ऊँची शाख से झाँकता है
एक जिसे छू सकते हैं आप
बढ़ाते ही अपना हाथ
एक दूर झुरमुटों के बीच से दिखाई देता है
एक नयी फूटती कोंपल का हरापन है
एक हरा बूढ़े पके हुए पेड़ का
एक हरा काई का होता है
और एक
पानी के रंग का हरा

कितने ही तो हैं आसमानी के रंग
रात का आसमान भी आसमानी है
सुबह के आसमान का भी नहीं है कोई दूसरा रंग
ढलती साँझ का हो
या हो भोर का आसमान
अपनी अलग रंगत के बावजूद
आसमानी ही होता है उसका रंग

मन के भी तो कितने हैं रंग
एक रंग जो डूबा है प्रेम में
एक जो टूटा और आहत है
एक पर छाई है घनघोर निराशा
फिर भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता
एक तलाशता है खुशी
छोटी छोटी बातों में
छाई रहती है एक पर उदासी फिर भी
एक मन वो भी है
जिसे कुछ भी समझ नहीं आता है
जो कहिं सुख और दुख के बीच में राह भटका है

-देवयानी

6 comments:

  1. बहुत सुंदर रंग और मन ।
    रंग बस दृष्टि है भ्रमित भी करती है।

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  2. एक मन वो भी है
    जिसे कुछ भी समझ नहीं आता है
    जो कहिं सुख और दुख के बीच में राह भटका है


    रंगो की ये प्रस्तुति बहुत शानदार लगी

    आभार

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-09-2018) को "आओ पेड़ लगायें हम" (चर्चा अंक-3108) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. एक ही रंग में कितने रंग... बहुत सुन्दर...
    मन के विविध रंग भा गये मन को...
    बहुत सुन्दर..

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