मेरी उजरत कम, तेरी ज़रूरत ज्यादा है
ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता, तेरा क्या इरादा है।
दांव पर ईमान लगाकर, तरक़्क़ी कर लेना
आज के दौर का, फ़लसफ़ा सीधा सादा है।
हड़बड़ी में दिख रहा, ख्वाहिशों का समंदर
लहरों में उफान है, आसमां पे चाँद आधा है।
ऐ जम्हूरियत तू भी, अब पहले जैसी नहीं रही
आजकल मुल्क में काम कम, शोर ज्यादा है।
बहुत हुई बारूदों की ज़िद, ये तमंचों की होड़
ख़ुदा ख़ैर करे, अभी क्या कम खून ख़राबा है।
नूर की ख़ातिर सितारे को, इतना ना निचोड़ो
सीधा चाँद को थामो, ये तो उसका एक प्यादा है।
-अमित जैन 'मौलिक'
बहुत बहुत धन्यवाद आभार आदरणीया दी जी। कृष्ण जनाष्टमी की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-09-2018) को "योगिराज का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3083) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री कृष्ण जन्मोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ।
ReplyDeleteलाजवाब, उम्दा भाई सच हमारी उजरत कम है इस शानदार गजल पर कुछ कह सकें।
ReplyDeleteनिशब्द बहुत बहुत सुंदर रचना हर शेर एक से एक एक पर भारी ।
बहुत सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteReally very nice
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