Tuesday, September 11, 2018

कमरे में बन के नूर रहना..........सतलज राहत


तुम्हारे रास्तों से दूर रहना 
कहा तक ठीक है मजबूर रहना

सभी के बस की बात थोड़ी है 
नशे में इस कदर भी चूर रहना

ना जाने किस कदम में छोड़ेगी
हमारे साथ होके दूर रहना

तुम्हारी याद ही तो जानती है
मेरे कमरे में बन के नूर रहना

सच तो ये है मेरी तमन्ना थी
तुम्हारी मांग का सिंदूर रहना

जो मेरे पास आना चाहती है
वो ही कहती है मुझसे दूर रहना

तो क्या ये ठीक है मेरे दिल में
तुम्हारा बन के यूँ नासूर रहना

मुझसे पूछो इतने पत्थरों में
कितना मुश्किल है कोहिनूर रहना

उसकी आदत मै आ गया है अब
हमारे नाम से मशहूर रहना

मैंने तो सिर्फ इतना जाना है
बड़ा मुश्किल है तुझसे दूर रहना

कभी इस्सा कभी सुकरात बनना
कभी सरमद कभी मंसूर रहना

ये शायरी नहीं तज्जली है
ज़ेहन ऐसे ही कोहेतूर रहना

सतलज हम तुझे पहचानते है
तुझे हक है युँही मगरूर रहना 
- सतलज राहत



5 comments:

  1. तुम्हारी याद ही तो जानती है
    मेरे कमरे में बन के नूर रहना

    सच तो ये है मेरी तमन्ना थी
    तुम्हारी मांग का सिंदूर रहना

    जो मेरे पास आना चाहती है
    वो ही कहती है मुझसे दूर रहना
    बहुत सुंदर 👌👌👌

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  2. शानदार रचना ...लाजवाब

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-09-2018) को "क्या हो गया है" (चर्चा अंक-3092 ) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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