Wednesday, September 26, 2018

साजिश में शामिल नहीं हूँ......एकान्त श्रीवास्तव


इस रंग के बारे में
कोई भी कथन इस वक़्त
कितना दुस्‍साहसिक काम है
जब जी रहे हैं इस रंग को
गेंदे के इतने और इतने सारे फूल

जब हँस रहे हों
पृथ्‍वी पर अजस्र फूल
सरसों और सूरजमुखी के 
सूर्य भी जब चमक रहा हो
ठीक इसी रंग में
और यही रंग जब गिर रहा हो
सारी दुनिया की देह पर

यह रंग हल्‍दी की उस गाँठ का है
जो सिल पर लोढ़े के ठीक नीचे
पिसी जाने के इंतजार में है

यह एक बहुत नाजुक रंग है
जिससे रंगी है
लड़कियों की चुन्‍नी और नींद

सुनो! मुझे खुशी है 
कि मैं इस रंग से चीजों को जुदा करने की
साजिश में शामिल नहीं हूँ।

-एकान्त श्रीवास्तव

4 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना ...👌👌👌

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर रचना ..

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3107 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    ReplyDelete