Saturday, January 6, 2018

धूप के कुछ टुकड़े.....शिवराम के


पेड़ों की टहनियों से
धूप के टुकड़ों सा, तुम्हारी यादें
छनकर मेरे स्मृति पटल पर
सिमट जाती है.
आती हो अक्सर कुछ इसी तरह, फिर
हल्की हवा के चलने पर
टहनियों के इधर से उधर होने पर
दो पत्तियों के बीच
किसी  तीसरी पत्ती के आने से
रोशनी का कारवां
कुछ पल मानो कहीं खो सी जाती है/
धूप के कुछ टुकड़े
माना कि आंखों पर लगते हैं
त्वचा पर चुभते हैं
मस्तिष्क को भी बेचैन रखते हैं.
लेकिन... धूप के यही कुछ टुकड़े
सुकून देते हैं
जब जब कभी झुरमुट से  छनकर
स्मृति पटल पर सिमट जाते हैं.
सब कुछ ठीक वैसे ही लगता है
जैसे तुम किसी अंधेरी गली से निकल कर
इस मन से लिपट जाते हो
न जाने क्या कुछ इस मन को दे जाते हो.
धूप के ये कुछ टुकड़े न जाने क्यों
अंधेरी रात में नहीं आते
नहीं आते तुम भी
जब कभी जीवन के आकाश में
बादल बिखरे होते हैं.

- शिवराम के

Friday, January 5, 2018

मैं उसकी माँ हूँ....रश्मि भटनागर


पहली बार जब उसे छुआ,
लगा..ओस में भींगे गुलाब को छुआ..! 
उसकी चमकती आँखों ने हर बार 
मेरी आँखों में पालते सपनों को छुआ। 

दुःख की तेज़ हवाओं में उसने 
हर बार हौले से मेरे कंधे को छुआ,
उसकी हर छुअन ने हर बार 
मेरी उड़ान और हौसले को छुआ। 

उलझी-उलझी उलझनों में सदा 
उसकी सही सोच ने मेरी समझ को छुआ। 
उसके दिल ने हर बार 
मेरे दिल की धड़कनों को छुआ। 

इसीलिए मैं अब तक ज़िंदा हूँ 
क्योंकि...वो मेरी बेटी है...और 
मैं उसकी माँ हूँ।  

-रश्मि भटनागर

Thursday, January 4, 2018

फ़स्ल काँटों की पहले आती है....सचिन अग्रवाल

ज़ुल्म पर जब शबाब आएगा
देखना इंक़लाब आएगा

उसकी ज़िद है तो टूट जाने दे
कल कोई और ख़्वाब आएगा

मौत! डर इसलिए भी लगता है
उम्र भर का हिसाब आएगा

इन अंधेरे को कौन समझाए
सुबह फिर आफ़ताब आएगा

फ़स्ल काँटों की पहले आती है
तब कहीं इक गुलाब आएगा
-सचिन अग्रवाल
नए मरासिम से

Wednesday, January 3, 2018

मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना....अनवर जलालपुरी

मशहूर शायर ज़नाब अनवर जलालपुरी का कल दिन को 10 दस बजे लखनऊ में इन्तेकाल हो गया
आज उनके शहर जलालपुर में सुपुर्देख़ाक किया जाएगा
06 जुलाई 1947 - 02 जनवरी 2018
मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना
मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना

मेरी जुदाई तेरे दिल की आज़माइश है
इस आइने को कभी शर्मसार मत करना

फ़क़ीर बन के मिले इस अहद के रावण
मेरे ख़याल की रेखा को पार मत करना

ज़माने वाले बज़ाहिर तो सबके हैं हमदर्द
ज़माने वालों का तुम ऐतबार मत करना

ख़रीद देना खिलौने तमाम बच्चों को
तुम उन पे मेरा आश्कार मत करना

मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा
तुम उँगुलियों पे मगर दिन शुमार मत करना
-अनवर जलालपुरी

Tuesday, January 2, 2018

एक सौदा था जिसने सर छोड़ा....शीन काफ़ निज़ाम

अक्स ने आईने का घर छोड़ा
एक सौदा था जिसने सर छोड़ा

भागते मंज़रों ने आंखों में
ज़िस्म को सिर्फ़ आंख भर छोड़ा

हर तरफ़ रोशनी फैल गई
सांप ने जब खंडहर छोड़ा

धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आंसुओं का घर छोड़ा

खिड़कियाँ पीटती है सर शब भर
आखिरी फ़र्द ने भी घर छोड़ा

क्या करोगा निज़ाम रातों में
ज़ख़्म की याद ने अगर छोड़ा
-शीन काफ़ निज़ाम

Monday, January 1, 2018

कौन है हमसे बढ़के....केशव शरण

क्यों नसीबों की बात करते हैं
जब ग़रीबों की बात करते हैं 

फिर कहेंगे हमें उठाने को
वो सलीबों की बात करते हैं 

किनके अल्फ़ाज़ सबसे झूठे हैं
क्या अदीबों की बात करते हैं

जाइये मत अभी रक़ीबों पर
हम हबीबों की बात करते हैं 

कौन है हमसे बढ़के, आप अगर
बदनसीबों की बात करते हैं
-केशव शरण

Sunday, December 31, 2017

मैं पुरूष था....नीरज द्विवेदी

मैं पुरूष था, 
नही समझ पाया 
स्त्री होने का मर्म..
वो स्त्री थी, 
जानती थी..
मेरे पुरूष होने का सच !!

-नीरज द्विवेदी