Sunday, August 24, 2014

मुझ को खुदा ने क्या दिया.......हफ़ीज जालंधरी(अदु-अल-असर)

 


  कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
चारागरों ने और भी दिल का दर्द बढ़ा दिया

दोनों को दे सूरतें साथ ही आईना दिया
इश्क़ बिसोरने लगा हुस्न ने मुस्कुरा दिया

जौक-ए-निगाह के सिवा, शौक-ए-गुनाह के सिवा
मुझको बुतों से क्या मिला मुझ को खुदा ने क्या दिया

थी न ख़िजा की रोक-थाम दामन-ए-इख़्तियार में
हमने भरी बहार में अपना चमन लुटा दिया

हुस्न-ए-नज़र की आबरू सनअत-ए-बरहमन से है
जिस को सनम बना लिया उसको ख़ुदा बना दिया

दाग़ है मुझ पे इश्क़ का मेरा गुनाह भी तो देख
उस की निगाह भी तो देख जिस ने ये गुल खिला दिया

इश्क़ की मम्लिकत में है शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुराद
उभरा कहीं जो ये फ़साद दिल ने वहीं दबा दिया

नक़्श-ए-वफ़ा तो मैं ही था अब मुझे ढूंढते हो क्या
हर्फ़-ए-ग़लत नज़र पड़ा तुम ने मुझे मिटा दिया

ख़ुब्स-ए-दरूं दिखा दिया हर दहन-ए-ग़लीज मे
कुछ न कहा हफ़ीज़ ने हंस दिया मुस्कुरा दिया

-हफ़ीज जालंधरी (अदु-अल-असर)
जन्मः 14 जनवरी 1900, जालंधर, पंजाब ब्रिटिश भारत
मृत्युः 21 दिसम्बर 1982, लाहोर, पाकिस्तान



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इश्क़ बिसोरनेः रोना, जौक-ए-निगाहः दर्शन में रुचि,
शौक-ए-गुनाहः गुनाह करने की चाह, ख़िजाः बुढ़ापा,
सनअत-ए-बरहमनः पूजा करना, मम्लिकतः राज्य,
शोरिश-ए-अक्ल-ए-ना-मुरादः बुद्धि का दुर्भाग्यपूर्ण तूफान
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प्राप्ति स्रोतः रसरंग

अच्छा पाठक बनना भी एक कला.............. बेन ओकरी की राय

  • 'अच्छा लेखक बनने की पहली शर्त है अच्छा पाठक बनना। लेखन की कला के साथ ही पढ़ने की कला भी विकसित की जानी चाहिए ताकि हम और बुद्धिमत्ता व संपूर्णता के साथ लिखे हुए को ग्रहण कर सकें। मेरे लिए लिखना व पढ़ना दोनों निर्युक्तिदायक प्रक्रियाएं हैं।' ये उद्गार थे अफ्रीकी लेखक बेन ओकरी के।

अंग्रेजी में लिखने वाले बेन ओकरी दुनियाभर के पाठकों के बीच अपनी जगह बना चुके हैं। उनकी रचनाओं का दुनिया की बीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। 'द फेमिश्ड रोड' के रचनाकार को अपने बीच पाकर श्रोता मंत्रमुग्ध थे।


खचाखचभरे पांडाल में भी सुई तोड़ सन्नाटे में बैठकर लोगों ने ओकरी की बातों को और उनके रचना पाठ को सुना। उन्होंने अपनी मां के बारे में कविता पढ़ी। मोटे तौर पर शीर्षक का अनुवाद था 'सोती हुई मां'। उनकी पढ़ी एक अन्य कविता का अर्थ है- 'दुनिया में आतंक है तो दुनिया में प्यार भी है। मोहब्बत से भरी है यह दुनिया।'

लेखक ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में भी बताया। नाइजीरियाई वाचिक परंपरा व आधुनिक विश्व का संगम अपनी रचनाओं में करने वाले इस लेखक के साथ बातचीत की चंद्रहास चौधरी ने।


एक अन्य सत्र में 'द पावर ऑफ मिथ' यानी मिथकों की शक्ति के बारे में लेखक गुरुचरण दास ने अरशिया सत्तार, जौहर सिरकार व अमिष त्रिपाठी से चर्चा की।


त्रिपाठी की भारतीय पौराणिकता के फॉर्मेट में लिखी दो किताबें 'द इम्मोरटल्स ऑफ मेहुला' व 'द सीक्रेट ऑफ नागास' बहुत चर्चित हुई हैं। इन किताब की प्रतियां लाखों में बिक चुकी हैं। इसे पौराणिक किस्सों के जादुई तिलस्म का प्रतीक मानें या और कुछ, फिलहाल तो पौराणिकता फिर चर्चा में है।


पौराणिक प्रतीकों की शक्ति की चर्चा करते हुए वक्ताओं ने कहा- 'पौराणिक किस्से हमें रस्मों और परंपराओं के रूप में प्रदान किए जाते हैं। इनमें से कुछ हमारे लिए धर्म का हिस्सा भी बन जाते हैं। पर कुल मिलाकर यह सदियों से बहते आए ज्ञान की गंगा बन जाते हैं। पौराणिक किस्से एक ऐसा झूठ है जो सच बताते हैं। इन किस्सों की कल्पना की उड़ान पढ़ने-सुनने का जादू जगाती है। अक्सर इन किस्सों के पात्र पर थीम कालातीत होती है।'

तमिल में लिखने वाली दलित लेखिका बामा फॉस्टीना ने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास कारुकू की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया। तमिलनाडु के दूर-दूरस्थ गांव में रहते पली-बढ़ी लेखिका ने कहा- कारुकू का मतलब पान की कटीली पत्ती होता है। उनके समुदाय ने वैसा ही जीवन जिया है। बामा के उपन्यास को कई प्रकाशकों ने अस्वीकृत कर दिया था। अंततः एक चेरिटेबल ट्रस्ट ने इसे प्रकाशित किया और पढ़ने पर पाठकों ने इसे सराहा।


इसी सत्र में तमिल लेखक चारू निवेदिता ने भी अपना वक्तव्य रखा। विषय प्रवर्तन किया लेखिका व आयोजन की निदेशक नमिता गोखले ने। शब्द जगत के अलावा सुनहले पर्दे पर साहित्य लिखने वाले भी यहां मौजूद हैं व विभिन्न सत्रों में भागीदारी कर रहे हैं। गुलजार प्रसून जोशी के साथ अपने कहानी सत्र में छाए रहे। इन दोनों को सुनने के लिए दर्शकों में इतनी आतुरता थी कि आयोजकों को वेन्यू बदलना पड़ा। विधुविनोद चोपड़ा, अनुपमा चोपड़ा, संजना कपूर आदि फिल्मी हस्तियां भी हैं। लोग उत्साह और एकाग्रता से विश्लेषण सुन रहे हैं।





प्रस्तुतिः निर्मला भुराड़िया
 
यह आलेख पूर्व में धरोहर में प्रकाशित हो चुकी है 





Wednesday, August 20, 2014

वो ज़िंदगी सवाल हुई...........दुष्यन्त कुमार


बहुत सम्भाल के रक्खी तो पाएमाल हुई
सड़क पे फेंक दी तो जिन्दगी निहाल हुई

बड़ा लगाव है इस मोड़ को निगाहों से
कि सबसे पहले यहीं रोशनी हलाल हुई

कोई निज़ात की सूरत नहीं रही, न सही
मगर निज़ात की कोशिश तो एक मिसाल हुई

मेरे ज़ेहन पे ज़माने का वो दबाव पड़ा
जो एक स्लेट थी वो ज़िंदगी, सवाल हुई

समुद्र और उठा, और उठा, और उठा
किसी के वास्ते ये चांदनी वबाल हुई

उन्हें पता भी नहीं है कि उनके पांवो से
वो खूं बहा है कि ये गर्द भी गुलाल हुई

मेरी ज़ुबान से निकली तो सिर्फ नज़्म बनी
तुम्हारे हाथ में आई तो एक मशाल हुई

पाएमालः रौंदी हुई
-दुष्यन्त कुमार
प्राप्ति स्रोतः मधुरिमा

Tuesday, August 19, 2014

अज़ीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाए...........उबैदुल्लाह अलीम



 अजीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये
अब इस क़दर भी ना चाहो कि दम निकल जाये

मोहब्बतों में अजब है दिलों का धड़का सा
कि जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये

मिले हैं यूं तो बोहत, आओ अब मिलें यूं भी
कि रूह गरमी-ए-इन्फास* से पिघल जाये

मैं वोह चिराग़ सर-ए-राह्गुज़ार-ए-दुनिया
जो अपनी ज़ात की तनहाइयों में जल जाये

ज़िहे! वोह दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा-तर में रहे
खुशा! वोह उम्र जो ख़्वाबों में ही बहल जाये

हर एक लहज़ा यही आरजू यही हसरत
जो आग दिल में है वोह शेर में भी ढल जाये

गरमी-ए-इन्फासः सांसे
खुशाः खुशी

-उबैदुल्लाह अलीम
1939-1997

Monday, August 18, 2014

छिड़क रहे हैं इत्र लोग.......कलीम अव्वल




कितने मिले विचित्र लोग
वसन फाड़ते मित्र लोग

पत्थर से बैठे गुमसुम
जैसे, बस, हों चित्र लोग

योनाचार-रत संत यहां
फिर, भी, कहें पवित्र लोग

किस पर अब विश्वाश करें
धारे छली चरित्र लोग

फैली है दुर्गंध बहुत
छिड़क रहे हैं इत्र लोग

-कलीम अव्वल

प्राप्ति स्रोतः हेल्थ, पत्रिका

Sunday, August 17, 2014

इतना घूमा हूँ तुम्हारी चाह में.........अश्विनी कुमार विष्णु


 
 
अपना सारा जिस्म ही महका लगे
सोचना तुमको बहुत अच्छा लगे !

यूँ भी होता है तुम्हारी बज़्म में
वक़्त अपनी गोद में ठहरा लगे !

इस तरह देखो मुझे तुम आँख भर
ज़ख़्म इस दिल पर कोई गहरा लगे !

इतना घूमा हूँ तुम्हारी चाह में
ख़ूँ में हरदम कारवाँ भटका लगे !

कीजिए तो इश्क़ मौजे-नूर है
सोचिए तो धुन्ध का दरिया लगे !!

--अश्विनी कुमार विष्णु
प्रस्तुतिः सोनू अग्रवाल


http://yashoda4.blogspot.in/2012/05/blog-post.html

Saturday, August 16, 2014

हमारी याद आएगी...........रचनाकार :: अज्ञात



 











किसी से चोट खाओगे
हमारी याद आएगी,
तलाशोगे एक कतरा प्यार का,
किसी से कह न पाओगे,

तलाशोगे मुझे फिर तुम,
दिलों की तनहाइयों में,
कभी जब तनहा बैठोगे,
हमारी याद आएगी.

लौटा हूँ बहुत मायूस होकर
मैं तेरे दर से,
कभी खामोश बैठोगे
हमारी याद आएगी

समेट लेता सारे अश्क
तेरी आँखों की कोरों से,
कभी जब अश्क देखोगे
हमारी याद आएगी...!!

रचनाकार :: अज्ञात

प्रस्तुतिकरण :: सोनू अग्रवाल




http://yashoda4.blogspot.in/2012/08/blog-post_30.html