Monday, September 30, 2013

जीने वालों तुम्हें हुआ क्या है............."अख्तर"शीरानी


किसको देखा है ये हुआ क्या है,
दिल धड़कता है माज़रा क्या है.

इक मुहब्बत थी मिट चुकी या रब
तेरी दुनिया में अब धरा क्या है

दिल में लेता है चुटकियां कोई
है इस दर्द की दवा क्या है

हूरें नेकों में बता चुकी होंगी,
बाग़-ए-रिज़वां में अब रखा क्या है

उसके अहद-ए-शबाब में जीना
जीने वालों तुम्हें हुआ क्या है

अब दुआ कैसी है दुआ का वक़्त
तेरे बीमार में रहा क्या है

याद आता है लखनउ ‘अख्तर’
ख़ुल्द हो आएँ तो बुरा क्या है 

-"अख्तर"शीरानी


"अख्तर"शीरानी
उर्दू के शायर,
असली नामः मो. दाऊद खान
जन्मः 4, मई 1905, टोंक, राजस्थान
मृत्युः सितम्बर,1948, लाहोर, पाकिस्तान
 

मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो.............अहमद नदीम क़ासमी

किस क़दर सर्द है यह रात-अंधेरे ने कहा
मेरे दुशमन तो हज़ारों हैं - कोई तो बोले

चांद की क़ाश भी तहलील हुई शाम के साथ
और सितारे तो संभलने भी न पाए थे अभी

कि घटा आई, उमड़ते हुए गेसू खोले
वह जो आई थी तो टूटके बरसी होती

मगर एक बूंद भी टपकी न मेरे दामन पर
सिर्फ़ यख़-बस्ता हवाओं के नुकीले झोंके

मेरे सीने में उतरते रहे, खंजर बनकर 

कोई आवाज नहीं- कोई भी आवाज नहीं

चार जानिब से सिमटता हुआ सन्नाटा है
मैंनें किस कर्ब से इस शब का सफ़र काटा है

दुशमनों! तुमको मेरे जब्रे-मुसलसल की कसम
मेरे दिल पर कोई घाव ही लगाकर देखो

वह अदावत ही सही, तुमसे मगर रब्त तो है
मेरे सीने पे अलाव ही लगाकर देखो

-अहमद नदीम क़ासमी

चांद की क़ाशः टुकड़ा, तहलीलः घुलना, यख़-बस्ताःबहुत ठण्डी
जानिबः ओर, कर्बः दुख, जब्रे-मुसलसलः निरंतर अत्याचार
अदावतः दुश्मनी, रब्तः लगाव

यह रचना मुझे दैनिक भास्कर के रसरंग पृष्ट से प्राप्त हुई




अहमद नदीम क़ासमी
परिचय
मशहूर पाकिस्तानी श़ायर और साहित्यकार
जन्मः 20 नवम्बर,1916, सरगोधा
मृत्युः 10 जुलाई,2006, लाहोर

 












Sunday, September 29, 2013

ये गली सूनी पड़ी है घर चलो.................फ़ानी जोधपुरी


रात की बस्ती बसी है घर चलो
तीरगी ही तीरगी है घर चलो

क्या भरोसा कोई पत्थर आ लगे
जिस्म पे शीशागरी है घर चलो

हू-ब-हू बेवा की उजड़ी मांग सी
ये गली सूनी पड़ी है घर चलो

तू ने जो बस्ती में भेजी थी सदा
लाश उसकी ये पड़ी है घर चलो

क्या करोगे सामना हालत का
जान तो अटकी हुई है घर चलो

कल की छोड़ो कल यहाँ पे अम्न था
अब फ़िज़ा बिगड़ी हुई है घर चलो

तुम ख़ुदा तो हो नहीं इन्सान हो
फ़िक्र क्यूँ सबकी लगी है घर चलो

माँ अभी शायद हो "फ़ानी" जागती
घर की बत्ती जल रही है घर चलो 

-फ़ानी जोधपुरी 

सौजन्यः सतपाल ख्याल
http://aajkeeghazal.blogspot.in/2013/09/blog-post.html

Saturday, September 28, 2013

ज़मीर और मतलब की यलग़ार में.............मुमताज़ नाज़ां


ज़मीर और मतलब की यलग़ार में
उजागर हुए ऐब किरदार में

गिरा है ज़मीर ऐसा इंसान का
क़बा बेच आया है बाज़ार में

न पूछो वहाँ ऐश राजाओं के
जहां संत लिपटे हों व्यभिचार में

तजर्बे ये हासिल हैं इक उम्र का
निहाँ हैं जो चांदी के हर तार में

तमद्दुन ने हम को अता क्या किया
कि इंसानियत थी फ़क़त ग़ार में

गुलों की नज़ाकत ने ताईद की
अजब सी कशिश है हर इक ख़ार में

कोई नर्म कोंपल उभर आयेगी
“इन्हीं ज़र्द पत्तों के अंबार में”

न “मुमताज़” जीता यहाँ सच कभी
ये सब मंतक़ें यार बेकार में

-मुमताज़ नाज़ां 09867641102

यह रचना मुझे  lafzgroup.wordpress.com में पढ़ने को मिली
आप भी पढ़ सकते हैं इसे यहाँ- http://wp.me/p2hxFs-1oH
चित्र गूगल महराज की कृपा से



Friday, September 27, 2013

इस दिल में तुम्हारी यादें.........मनीष गुप्ता



क्यूँ खुद में कैद होकर
लिए फिरता हूँ खुद को
दर्द और ग़मों से भरा
खंडहर सा मकान कोई

साथ है ख्याबों के कारवाँ
उनकी यादों को थामे हुए
चल रहे हैं यूं थके थके से
जैसे भटके हों लंबे सफर में

गुजरे लम्हे डरा रहे हैं
रात के काले साये बनकर
धड़कनों पे पहरा है कोई
मौन हैं जज़्बात दिल के

वक़्त की गहरी धुन्ध में
मिट गए हैं कुछ निशान
बस रह गयी हैं तो सिर्फ
इस दिल में तुम्हारी यादें

-मनीष गुप्ता

Thursday, September 26, 2013

थाम कर पृथ्वी की गति..............दिविक रमेश


चाहता हूं
रुक जाए गति पृथ्वी की
काल से कहूं सुस्ता ले कहीं
आज मुझे बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।

खोल दूंगा आज मैं
अपनी उदास खिड़कियां
झाड़ लूंगा तमाम जाले और गर्द
सुखा लूंगा सीलन-भरे परदे।

कहूँगा
सहमी खड़ी हवा से
आओ, आ जाओ आँगन में
मैं तुम्हें प्यार दूंगा,
जाऊँगा तुम्हारे पीछे-पीछे
खोजने एक अपनी-सी खुशबू
शरद के पत्तों-सा।

रात से कहूँगा
ले आओ ढ़ेर से तारे
सजा दो जंगल मेरे आसपास
मैं उन्हें आँखों की छुवन दूंगा।

खोल दूंगा आज
समेटी पड़ी धूप को
जाने दूंगा उसे
तितलियों के पंख सँवारने।
थामकर पृथ्वी की गति

रोककर कालचक्र
आज हो जाऊंगा मुक्त।
बहुत प्यार करना है ज़िन्दगी से।

--दिविक रमेश

याद मेरी है वहां, गुजरी बहारों की तरह..........फ़ातिमा हसन



चांदनी रात में कुछ फीके सितारों की तरह,
याद मेरी है वहां, गुजरी बहारों की तरह..

जज़्ब होती रही हर बूंद मिरी आँखों में
बात करता रहा वो हलकी फुवारों की तरह..

ये बियावां सही तन्हां तो कुछ भी नहीं
दूर तक फैले हैं साये भी चिनारों की तरह..

बात बस इतनी है इस मोड़ पे रस्ता बदला
दो क़दम साथ चला वो भी हजारों की तरह..

कोई ताबीर नहीं कोई कहानी भी नहीं
मैंनें तो ख्वाब भी देखें हैं नज़ारों की तरह

बादबां खोले जो मैंने तो हवाएँ पलटीं
दूर होता गया इक शख़्स कनारों की तरह

फ़ातिमा तेरी ख़ामोशी को भी समझा है कभी
वो जो कहता रहा हर बात इशारों की तरह..

-फ़ातिमा हसन