Sunday, September 30, 2012

नयन............दीप्ति शर्मा

वरालि सी हो चाँदनी
लज्जा की व्याकुलता हो
तेरे उभरे नयनों में ।
प्रिय विरह में व्याकुल
क्यों जल भर आये?
तेरे उभरे नयनों में ।
संचित कर हर प्रेम भाव
प्रिय मिलन की आस है
तेरे उभरे नयनों में ।
गहरी मन की वेदना
छुपी बातों की झलक दिखे
तेरे उभरे नयनों में ।
वनिता बन प्रियतम की
प्रिय के नयन समा जायें
तेरे उभरे नयनों में ।


© दीप्ति शर्मा

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....बस हो गया प्यार?..........स्मृति जोशी "फाल्गुनी"

कैसे उग आए कांटे
तुम्हारी उस जुबान पर
जिस पर थमा रहता था
मेरे नाम का मधुर शहद,
ठंडे झरने की तरह मेरे गुस्से पर
झर-झर बरसने वाले तुम,


कैसे हो गए अचानक
तड़ातड़ पड़ते अंधड़ थपेड़े की तरह,
रिश्तों के रेगिस्तान में
मैंने तुमसे पाई
कितनी सुखद मीठी छांव,
और तुमने तपती गर्म रेत-से शब्दों से
कैसे छलनी कर देने वाले
किए वार,
बार-बार,
हर बार
....बस हो गया प्यार?



--स्मृति जोशी "फाल्गुनी" 

Friday, September 28, 2012

हरदम मुझे बहला दिया.........सुरेश पसारी 'अधीर'

मै तेरा हू, मै तेरा हूँ कहकर, हरदम मुझे बहला दिया ।
जब दिल हुआ उदास तो, दो बोल प्यार के सुना दिया।।

किसको कहता , कब तक सहता,
कब तक घुटता मै, मन ही मन में ,

कह दी जब कडवी बातें, अश्को का दरिया बहा दिया।
मै तेरा हू, मै तेरा हूँ, कहकर हरदम मुझे बहला दिया।।

सिसक सिसक कर रोता था मन,
तिल तिल करके मै जलता था ,

ठहराकर गुनहगार मुझे, गैरों का जामा पहना दिया।
मै तेरा हू, मै तेरा हूँ, कहकर, हरदम मुझे बहला दिया।।

वो धड़कन थी मेरी, दिल था मेरा,
हरदम मेरे ख्यालों में रहता था ,

करके दूर मुझे अपने से, मुझे खुद की जगह दिखा दिया।
मै तेरा हू, मै तेरा हूँ, कहकर, हरदम मुझे बहला दिया।।

दिल कहता है, अब भी मुझसे,
भूल जा तू वो सब, कड़वी बातें,

अहसान किया तुझपे जो,प्यार का मसीहा बना दिया।
मै तेरा हू, मै तेरा हूँ, कहकर, हरदम मुझे बहला दिया।। 


---सुरेश पसारी 'अधीर'

Tuesday, September 25, 2012

क्या प्रेम है मुझसे .............नीलू शर्मा



अजनबी नहीं हूँ सनम दिल से तेरे!
बस हाले-दिल जुबां से कहा नहीं करता!!

बसी है दिल में मेरे इबादत की तरह !
बस दर पर तेरे सनम बंदगी नहीं करता !!

बसती है दिल में सनम धड़कन की तरह !
बस साँसो के संग निकला नहीं करता !!

खूबसूरत है इतनी हरदम कहा करता हूँ !
बस किसी से सनम तेरी उपमा नहीं करता !!

देखता हूँ जब तुझे सनम लगती है ग़ज़ल !
शायर हूँ मैं फिर भी तुझ पर ग़ज़ल नहीं करता !!

क्या प्रेम है मुझसे सनम बस एक सवाल तेरा !
बस बंद करता हूँ पलकों को"प्रेम"है कहा नहीं करता !!


--नीलू शर्मा
 

Neelu Sharma 

Monday, September 24, 2012

आज विश्व बेटी दिवस है.......सुरेश पसारी "अधीर"



भोर की सुनहरी, किरण सी होती है बेटियाँ,
आंगन मे कोयल सी, चहचहाती है बेटियाँ।


बिन बेटियों के, सुना सा लगता है ये आंगन,
पुत्र घर की शान तो, कुल की आन है बेटियाँ।

कर देती है घर को, अपने व्यवहार से रौशन,
मगर व्यथा मन की, कह ना पाती है बेटियाँ।

पहले पिता का घर, फिर अपने ससुराल को,
प्यार से घरो को ,सजाती संवारती है बेटियाँ।

पढ बांच लेना इनके, भोले से सरल मन को ,
सर्वस्व वार देती है, कुलो की आन है बेटियाँ।

बाबुल के घर आंगन, फुदकती है चिरैया सी,
बहू बनके ससुराल की, शान होती है बेटियाँ।

कम ज्यादा का कभी, ये शिकवा नही करती,
जो मिला मिल बाँटकर, खा लेती है बेटियाँ।

उड़ान में तो गगन की, दूरियाँ भी पूरी करले
पर मन को कभी अपने, मार लेती है बेटियाँ।

है दिल मे तूफ़ान भी और सागर की गहराई भी
जिन्दगी की धूप मे शीतल सी छांव है बेटियाँ।

कम मत आंकना "अधीर" इन्के योगदान को,
दुनियाँ मे दो दो कुलों को,तार देती है बेटियाँ।
सुरेश पसारी "अधीर"

आदमी वो महान है यारो.............शाहिद ‘समर’





आदमी वो महान है यारो,
उसकी बातों में जान है यारो।

 

मेघ से हमने दुश्मनी कर ली,
जबकि कच्चा मकान है यारो।

देश जंगल, शिकार जनमन है,
राजनीति मचान है यारो।

बेघरों को बंटेंगे घर कैसे,
बंद फाइल में प्लान है यारो।

रोज बोता है वो पैसों की फसल
वो गजब का किसान है यारो।

तीर तरकश में कम नहीं शाहिद,
किंतु टूटी कमान है यारो।



--शाहिद ‘समर’

वो ही याद आता है............सुरेश पसारी "अधीर"

दूर रहना था तो , दूर रहता क्यों नही कोई,
जाने के लिए दूर, क्यों कोई करीब आता है।

उसे धडकनों की तरह, बसाया था दिल में,
भूल जाये भले कोई, हमे सब याद आता है।

दिल का दर्द कितना सहे, अब ये आंखे भी,
अश्क बनकर आँखों से, बाहर ही आता है ।

बहुत की कोशिशे, दर्द-ए-ज़ुदाई भुलाने की,
ये ज़ेहन भी हर बार ,बस उधर ही जाता है।

किसी अज़ीज़ की दी,सौगात है ये ज़ख्म भी,
हरा ही रहता हरदम ,कभी भर नही पाता है।

खवाहिशें तो बहुत थी, जिंदगी में "अधीर",
क्यों हरदम मुझे बस ,वो ही याद आता है।


--सुरेश पसारी "अधीर"