वात्सल्य
ट्रेन का खचाखच भरा डिब्बा बेतहाशा गर्मी,
सामने वाली बर्थ पर एक माँ अपने बच्चे को चुप कराने में लगी। बच्चा रोता रहा,
माँ की डांट भी उसे चुप नहीं करा सकी, इस तरफ की बर्थ पर एक माँ अपने लाडले को
दूध की बोतल मुंह में दिए थी,
रोता बच्चा चुप होकर सो गया।
माँ ने सामने वाले माँ और जिद करते बच्चे को देखा,
भूख से वह भी रो रहा था, कोई डांट-फटकार उसे चुप नहीं करा पा रही थी,
भूखा है बच्चा तुम्हारा। कब से देख रही हूं, ...
बुरा न मानो तो ये बचा दूध उसे पिला दो,
दूसरी मां ने बिना ना-नुकुर किए बच्चे के मुख में बोतल दे दी।
बच्चे की क्या जात?
कम्पार्टमेन्ट में कुछ आवाजें. किसी ने कहा-और मां की भी कोई जाति होती है ?
पूरा डिब्बा वात्सल्य रस से सराबोर था।
दोनों माताएं अपने लाडले को देख आश्वस्त हुई जा रही थी।
सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर संदेश।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभारी
Deleteवंदन
बेहतरीन रचना 🙏
ReplyDeleteसचमुच प्रेम की कोई जाति नहीं होती
ReplyDeleteभूख का गणित निराला होता है,,वह कुछ नहीं देखता है यदि कुछ देखता है तो वह भूख मिटाने की जुगत,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletewah!!!
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