देखो...
तुम रोना मत
मेरे घर की दीवारें
कच्ची हैं
तुम्हारे आंसुओं का बोझ
ये सह नहीं पाएंगी
-:-
वो तो
महलों की दीवारें होती हैं
जो न जाने कैसे
अपने अंदर
इतनी सिसकियाँ
समेटे रहती हैं और
फिर भी
सर ऊंचा करके
खड़ी रहती हैं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
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