Tuesday, January 17, 2017

आंसुओं का बोझ..........मंजू मिश्रा


देखो...
तुम रोना मत 
मेरे घर की  दीवारें
कच्ची हैं 
तुम्हारे आंसुओं का बोझ 
ये सह नहीं पाएंगी 
-:-
वो तो
महलों की दीवारें होती हैं 
जो न जाने कैसे
अपने अंदर 
इतनी सिसकियाँ
समेटे रहती हैं और 
फिर भी
सर ऊंचा करके
खड़ी रहती हैं


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