अनन्त पथ गामिनी
होती है नदियां
घरणीधर नंदिनी
दुरूह पथ गामिनी
जीवन प्रवाहिनी
होती है नदियां
पर्वतों को लांघती
प्रस्तरों को तोड़ती
कलकल निनादिनी
होती है नदियां
हरती हैं श्रम स्वेद
मेटती कलुष-भेद
सतत आह्लादिनी
होती है नदियां
घाटी में लिखती
सभ्यता की महती
जीवन संवर्धिनी
होती है नदियां
देवालय, तीर्थ क्षेत्र
इनके हैं तट मित्र
पाप प्रक्षालिनी
होती है नदियां
कृष्णा मणिकर्णिका
कावेरी नर्मदा
अमल जल प्लावनी
होती है नदियां
ब्रम्हपुत्र सुरसरि
क्षिप्रा गोदावरी
परम पुण्य पावनी
होती है नदियां
नदियां हों संरक्षित
इनमें है अपना हित
अनन्त पथ संगिनी
होती है नदियां
-मृणालिनी धुले
बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता । नदियों के प्रति नजरिया और भी मोहक हो गया । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता । नदियों के प्रति नजरिया और भी मोहक हो गया । धन्यवाद ।
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