Saturday, January 21, 2017

मौन..........श्वेता मिश्र











मौन मुखर प्रश्न मेरे 
उत्तर विमुख हुए जाते हैं
स्याह सी रात के साए
आ उन्हें सुलाते हैं 

नदिया चुप सी बहती है
चाँदनी मौन में निखरती है
अंतर्मन के उथल पुथल में
मौन रच बस मचलती है 

मन का कोलाहल
प्रखर हो जाता है
मौन का बसेरा मन
जब पता है 
गहरा समुद्र भी
कभी कभी मौन
हो जाता है 
एकाकी हो कर भी
चाँद सभी का कहलाता है
-श्वेता मिश्र

2 comments:

  1. मौन का मुखर हो जाना हमेशा असहनिय होता हैं
    सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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