Monday, January 23, 2017

लिखता नहीं तो.... राकेश रोहित
















लिखता नहीं तो मर जाता
आत्मा के अंधेरे में
उन्हीं शब्दों की रोशनी है

जो मैं तुम्हें यादकर
निर्जन में गाता !

कहता नहीं तो ढह जाता
जैसे ढह जाता है कोने का वीराल घर
जहां एकांत में बहे आंसुओं की सीलन है
और है किसी पुराने पन्ने में लिखा तुम्हारा नाम !

कही गई बात है फिर भी कहता हूँ
जैसे खिलता है खिला हुआ फूल
जैसे पुकारता हूँ तुमको सदियों पुराने नाम से
तो प्रथम स्पर्श से सिहरती है
धरती की सारी सुन्दरताएँ !

लिखता नहीं तो मैं मर जाता
कहते हुए मैं रोता हूँ  विकल, विह्वल
मैं जिस ईश्वर को याद करता हूँ
क्या वह तुम्हारी स्मृति से रचा गया है !

-राकेश रोहित

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