मृत्यु के उस पार
क्या है एक और जीवन आधार
या घटाटोप अंधकार।
तीव्र आत्मप्रकाश
या क्षुब्ध अमित प्यास।
शरीर से निकलती चेतना
या मौत-सी मर्मांतक वेदना
एक पल है मिलन का
या सदियों की विरह यातना।
भाव के भंवर में डूबता होगा मन
या स्थिर शांत कर्मणा
दौड़ता-धूपता जीवन होगा
या शुद्ध साक्षी संकल्पना।
प्रेम का उल्लास अमित
या विरह की निर्निमेष वेदना
रात्रि का घुटुप तिमिर है
या हरदम प्रकाशित प्रार्थना।
है शरीर का कोई विकल्प
या है निर्विकार आत्मा
है वहां भी सुख-दु:ख का संताप
या परम शांति की स्थापना।
है वहां भी पाप-पुण्य का प्रसार
या निर्द्वंद्व अंतस की कामना
होता होगा रिश्तों का रिसाव
या शाश्वत प्रेम की भावना।
-सुशील कुमार शर्मा
अति सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना .
ReplyDeleteहै वहां भी सुख-दु:ख का संताप
ReplyDeleteया परम शांति की स्थापना।
वाह!!
एक दार्शनिक की कविता, थोड़ा सर के ऊपर से निकल जाने वाली. कविता थोड़ी सहज हो, थोड़ी सरल हो तो क्या हर्ज़ होगा?
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