Thursday, January 19, 2017

उलटी हो गई सब तदबीरें...........मीर तक़ी 'मीर'

1722 -1810 
उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया

अह्द-ए-जवानी रो-रो काटा, पीरी में लीं आँखें मूँद
यानि रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया

नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया

सारे रिन्दो-बाश जहाँ के तुझसे सजुद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझको अमान किया

सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया

किसका क़िबला कैसा काबा कौन हरम है क्या अहराम 
कूचे के उसके बाशिन्दों ने सबको यहीं से सलाम किया

ऐसे आहो-एहरम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सिहर किया, ऐजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझ को राम किया

याँ के सपेद-ओ-स्याह में हमको दख़ल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया, या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया

सायदे-सीमीं दोनों उसके हाथ में लेकर छोड़ दिए
भूले उसके क़ौलो-क़सम पर हाय ख़याले-ख़ाम किया

ऐसे आहू-ए-रम ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल है
सिह्र किया, ऐजाज़ किया, जिन लोगों ने तुझको राम किया

'मीर' के दीन-ओ-मज़हब का अब पूछते क्या हो उनने तो
क़श्क़ा खींचा दैर  में बैठा, कबका तर्क इस्लाम किया

-मीर तक़ी 'मीर'

तदबीरें : युक्तियाँ
तदबीरें : यौवन-काल
पीरी :वृद्धावस्था
मुख़्तारी : स्वतंत्रता
अबस : यूँ ही
रिन्दो-बाश : शराबी/ मवाली
सजुद में रहते हैं : तेरा सम्मान करते हैं
वहशत: पागलपन में
सायदे-सीमीं : चाँदी-सी बाहें
आहू-ए-रम ख़ुर्दा : ज़ख़्म खाए-हिरण
वहशत: पागलपन
राम : शांत
क़श्क़ा खींचा : तिलक लगाया
दैर : मंदिर
तर्क : छोड़

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