Friday, April 19, 2013

ये चीज़ बेशकीमती ... मेरे हाथ लग गई.................अमित हर्ष



रफ्ता रफ्ता .. किनारे रात लग गई
सोचते सोचते ...... आँख लग गई

गुफ्तगू में कहीं ...... ज़िक्र भी नहीं
बुरी बहुत उन्हें .. वो बात लग गई
...
बताने पे आमादा थे .. रह रहकर अपनी
मालूम उन्हें भी .. मेरी औकात लग गई

कम न थे ऐब .... और अब शायरी भी
क्या क्या तोहमद .. मेरे साथ लग गई

अब न गुजरेंगे गलियों से .. गुज़रे पलों की
सोच रहे थे कि ... यादों की बरात लग गई

ज़माना ही बतायेगा मोल .... शायरी का
ये चीज़ बेशकीमती ... मेरे हाथ लग गई 

----अमित हर्ष

3 comments:

  1. waaaaaaaaaaah or dusra sher to behtrin bna hai waaaaaaaaaah

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  2. bahut khoob behatareen gazal ******रफ्ता रफ्ता .. किनारे रात लग गई
    सोचते सोचते ...... आँख लग गई

    गुफ्तगू में कहीं ...... ज़िक्र भी नहीं
    बुरी बहुत उन्हें .. वो बात लग गई
    ...
    बताने पे आमादा थे .. रह रहकर अपनी
    मालूम उन्हें भी .. मेरी औकात लग गई

    कम न थे ऐब .... और अब शायरी भी
    क्या क्या तोहमद .. मेरे साथ लग गई

    अब न गुजरेंगे गलियों से .. गुज़रे पलों की
    सोच रहे थे कि ... यादों की बरात लग गई

    ज़माना ही बतायेगा मोल .... शायरी का
    ये चीज़ बेशकीमती ... मेरे हाथ लग गई

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