मेरे हाल पर रहम खाते हुए,
वो आये तो हैं मुस्कुराते हुए !
जहां दिल को जाना था ए साथिया,
वहीं ले गया मुजको जाते हुए !
ये तूफान कितना मददगार है,
चला है सफीना बढाते हुए !
मुझे याद फिर बिजलियां आ गई,
नया आशियाना बनाते हुए !
जमाने की क्यूं अक्ल मारी गई,
मेरे दिल का सिक्का भुनाते हुए !
ये हालात ने क्या असर कर दिया,
जो मैं रो पड़ी मुस्कुराते हुए !
ए 'रेखा' गमों की मुहब्बत तो देख,
करीब आ गए दूर जाते हुए !
--रेखा अग्रवाल
ग़ज़लः सौजन्य श्री अशोक खाचर
arewaaah.....behtrin gazl hai
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल......
ReplyDeleteबहुत उम्दा |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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