माँ मैं कुछ कहना चाहती हूँ
माँ मैं भी जीना चाहती हूँ
तेरे आँगन की बगिया में
पायल की छमछम करती माँ
चाहती मैं भी चलना
तेरी आँखों का तारा बन
चाहती झिलमिल करना
तेरी सखी सहेली बन माँ
चाहती बाते करना
तेरे आँगन की बन तुलसी
मान तेरे घर का बन माँ
चाहती मैं भी पढ़ना
हाथ बँटाकर काम में तेरे
चाहती हूँ कम करना
तेरे दिल के प्यार का गागर
चाहती मैं भी भरना
मिश्री से मीठे बोल बोलकर
चाहती मैं हूँ गाना
तेरे प्यार दुलार की छाया
चाहती मैं भी पाना
चहक-चहक कर चिड़ियाँ सी
चाहती मैं हूँ उड़ना
महक-महक कर फूलों सी
Monika Jain 'पंछी'
http://www.hindithoughts.com/2012/07/poem-on-save-girl-child-in-hindi.html
चहक-चहक कर चिड़ियाँ सी
ReplyDeleteचाहती मैं हूँ उड़ना
महक-महक कर फूलों सी
चाहती मैं भी खिलना
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ummeed sapnon ki, ummeed jiwan ki ...
नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
waaaah bhotkhub, bhetrin
ReplyDeleteएक बेटी की मन की चाहत,बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteye andaze mohabbt hai bete ki guftgu hai ummid ka sapna hai chahat ka ujala hai, sundar
ReplyDeleteचहक-चहक कर चिड़ियाँ सी
ReplyDeleteचाहती मैं हूँ उड़ना
महक-महक कर फूलों सी
चाहती मैं भी खिलना-------
भावपूर्ण रचना,मन को छूती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!! बहुत दिनों बाद ब्लाग पर आने के लिए में माफ़ी चाहता हूँ
ReplyDeleteबहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
कविता काफी उम्दा है
ReplyDeleteउपर की दो पंक्तियाँ 'दामिनी' की याद दिलाती हैं।
ब्लॉग पर मेरी मेरी पहली पोस्ट : : माँ
(नया नया ब्लॉगर हूँ तो ...आपकी सहायता की महती आवश्यकता है .. अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।)
मार्मिक ... सच है की हर किसी का हक है जेना ... ओर उससे ये हक नहीं छीनना चाहिए ... समाज को बदलना होगा ...
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
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