वो आ जाए, ख़ुदा से की दुआ अक्सर
वो आया तो, परेशाँ भी रहा अक्सर
ये तनहाई ,ये मायूसी , ये बेचैनी
चलेगा कब तलक, ये सिलसिला अक्सर
न इसका रास्ता कोई ,न मंजिल है
‘महब्बत है यही’ सबने कहा अक्सर
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वो ख़ामोशी वही दुख है वही मैं हूँ
तेरे बारे में ही सोचा किया अक्सर
ये मुमकिन है कि पत्थर में ख़ुदा मिल जाए
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर
सतपाल ख्याल
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeletewaaah waaaah bhetrin....waaaaaaaaah
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteबेहतरीन ***न इसका रास्ता कोई ,न मंजिल है
ReplyDelete‘महब्बत है यही’ सबने कहा अक्सर
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वो ख़ामोशी वही दुख है वही मैं हूँ
तेरे बारे में ही सोचा किया अक्सर
ये मुमकिन है कि पत्थर में ख़ुदा मिल जाए
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति
पधारें "आँसुओं के मोती"
बेहतरीन
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDelete''माँ वैष्णो देवी ''
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
ReplyDeleteमिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वाह ! क्या बात है !
कहाँ कहाँ से ढूंढ लाती हो कविता अक्सर :)
सुंदर प्रस्तुति .... बेहतरीन रचना!!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteनवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
waah .....ati sundar ......
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ... बधाई !
ReplyDeleteDhanyavaad
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