तन्हाइयों में रह कर
बर्बाद हो गए है हम
बर्बाद हो गए है हम
जब से ये आई है तन में
चुप रहते है हम
शाम सुहानी खुशियाँ भरने वाली
वो दर्द जगाये दिल में
देख को उनको मन भी भरमाये
भूल गए सब दोस्तों को
अब तो अलग थलग पड़ गए रे हम
दिन तो बीते यादों में
रात कि गहरे में डूबे मन
जब भी छोड़ के भागूं तन्हाई को
तेरा साया पीछा करता हरदम
तन भी सुखा मन भी डूबा
रोनी सी सूरत हो गई रे
कहने को तो खुश हूँ
तेरे बिछुडन से बेहाल हुए हम
--रमेश पासी
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचना,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति! मेरी बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteसुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना 05-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना।
सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
viyog jaha kashtkari hota hai vahi milan ki pratiksha
ReplyDeleteka sukh bhi samete huye hota hai
बढ़िया रचना.
ReplyDeleteसुन्दर एवं भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना
ReplyDeletebahut hi sundar wa sarthak rachana
ReplyDeleteतुम तो बस दे कर चले गए,कैसे निपटू इन यादों को,.
ReplyDeleteशाम सवेरे उमड़ जाती हैं, दिल में तो
,जो तनहा कर देती दिन रातों को,
समझाए न समझती बस पीछा करती उन बातों को.