Monday, April 8, 2013

एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा..........कुमार विश्वाश


मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्ही पर वार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हे अधिकार दूँगा

--कुमार विश्वाश

6 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना.....
    शुक्रिया यशोदा...

    सस्नेह
    अनु

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  2. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें

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