Tuesday, March 5, 2013

पिछले पन्नों में‍ लिखी जाने वाली कविता......तिथि दानी

अक्सर पिछले पन्नों में ही
लिखी जाती है कोई कविता
फिर ढूंढती है अपने लिए
एक अदद जगह
उपहारस्वरूप दी गई
किसी डायरी में
फिर किसी की जुबां में
फिर किसी नामचीन पत्रिका में

फिर भी न जाने क्यों
भटकती फिरती है ये मुसाफिर
खुद को पाती है एकदम प्यासा
अचानक इस रेगिस्तान में
उठते बवंडर संग उड़ चलती हैं ये
बवंडर थककर खत्म कर देता है
अपना सफर
लेकिन ये उड़ती जाती हैं
और फैला देती है
अपना एक-एक कतरा
उस अनंत में जो रहस्यमयी है।
लेकिन एक खास बात
इसके बारे में,
आगोश से इसके चीजें
गायब नहीं होतीं
और न ही होती है
इनकी इससे अलग पहचान

लेकिन यह कविता
शायद! अपने जीवनकाल में
सबसे ज्यादा खुश होती है
यहां तक पहुंचकर
क्योंकि
ब्रह्माण्ड के नाम से जानते हैं
हम सब इसे।



-तिथि दानी
पुनः प्रकाशन धरोहर से
http://yashoda4.blogspot.in/2012/08/blog-post.html

6 comments:

  1. लेकिन एक खास बात
    इसके बारे में,
    आगोश से इसके चीजें
    गायब नहीं होतीं
    और न ही होती है
    इनकी इससे अलग पहचान
    --------------------------
    बीते हुए पल की तड़प को भी साकार करती हैं पिछले पन्नों की कवितायें ..

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  2. utkristh chintan,"agosh me gr shabdon jivan lipt gaya,.
    khud b-khud jivan ek khooshurat dharohar ban gya.."

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  3. उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  4. उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  5. सुंदर और सार्थक प्रस्तुती
    साभार.........

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  6. बहुत खूब
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

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