कनखियों से देखना...............डॉ. हरीश निगम
सर्दियों का धूप सी
तुम गुनगुनी
जब कभी तुम
पास से गुजरी
सरगमों -सी
देह में
उतरी
ज्यों हवा आकर छुए
छन्दों - बुनी
कनखियों से
ही सही
देखो.............
फूल कुछ
मुस्कान के
फेंको.
पतझड़ो - सी जिंदगी
हो फागुनी....
डॉ. हरीश निगम
mushkurane aur dekhne ki abhivhkti ka sundar aahsas karati prastuti
ReplyDeleteकनखियों से
ReplyDeleteही सही
देखो.............
फूल कुछ
मुस्कान के
फेंको.
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आभार उत्कर्ष प्रस्तुति
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो