जब भी
तुम बिस्तर सो उठकर
महावर लगे पैरों से चलकर
मेंहदी लगे हाथों से
दरवाजा खोलती हो
मेरे शहर में
उषा मुस्कुराने लगती है
जब भी
तुम आँचल संवारती हो
और तुम्हारी चूड़ियां
खनक उठती है
मेरे शहर के मंदिर में
कोई भक्त
मधुर घण्टियां बजाता है..
जब भी
बादल छाने लगते हैं
और मेरी याद सताने लगती है
तुम्हारी आँखें भीगने लगती है
तब मेरे शहर की
नदियों की पुलों पर
पानी छलकने लगता है....
--बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'
तुम बिस्तर सो उठकर
महावर लगे पैरों से चलकर
मेंहदी लगे हाथों से
दरवाजा खोलती हो
मेरे शहर में
उषा मुस्कुराने लगती है
जब भी
तुम आँचल संवारती हो
और तुम्हारी चूड़ियां
खनक उठती है
मेरे शहर के मंदिर में
कोई भक्त
मधुर घण्टियां बजाता है..
जब भी
बादल छाने लगते हैं
और मेरी याद सताने लगती है
तुम्हारी आँखें भीगने लगती है
तब मेरे शहर की
नदियों की पुलों पर
पानी छलकने लगता है....
--बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'
जब भी
ReplyDeleteतुम आँचल संवारती हो
और तुम्हारी चूड़ियां
खनक उठती है
मेरे शहर के मंदिर में
कोई भक्त
मधुर घण्टियां बजाता है.प्रेम का महीन अहसास
बहुत ही सुन्दर मधुर प्रस्तुति.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई अरुण
ReplyDeletebade hi khoobshurat andaz me khooshurati ko vyakt kati
ReplyDeleteprastuti,marmspershi
चूड़ियां की खनक और मंदिर की मधुर घण्टियां .....बहुत पवित्र सा एहसास जगाती रचना
ReplyDeleteअपना पता छोड़ रही हूँ ..कृपया नजर डालें ...
http://shikhagupta83.blogspot.in/
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
ReplyDeleteसादर ,
शुभकामनायें .
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
दैनिक भास्कर 'मधुरिमा' के प्रेम विशेषांक में प्रकाशित मेरी इस कविता को पसंद करने वाले सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDelete- बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु'