तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है
जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
ज़िन्दगी ने मुझे दाँव पे लगा रखा है
जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है
इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है
दिल था एक शोला मगर बीत गये दिन वो क़तील,
अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है .......
एक और दिलकश रचना आपने पढ़ने को उपलब्ध कराई। आपका आभार यशोदा बहन!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया नज़्म!
ReplyDelete--
मगर ये तो कतील शिफाई की है!
आपने कातिल शेफाई लिखा है, कृपया सुधार दें!
इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
ReplyDeleteमैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है ....
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behtareen.. behtareen
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteवाह बेहतरीन उम्दा रचना | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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आवश्यक सुधीर कर दी हूँ भाई
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