सनन्-सनन् निनाद कर रहा पवन
अजस्र मर्मरित हुए हैं वन सघन
न पर्ण सा बना रहे सदा सिहर-सचल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल।
घनक/ घनक घनेरते घनेरे घन
नृत्य कर रहे निरत तड़ित चरण
मन रहे न यह कभी तेरा विकल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल।
झरर-झरर वरिष अदिति निगल रहा
अमित अनिष्ट अग्नि ज्वाल पल रहा
सामने अड़े हुए अडिग अचल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल
थरर-थरर कांपती वसुंधरा
तीव्र ज्वार ले उदधि उमड़ पड़ा।
हो रहे विरोध में ये जग सकल
ओ मनुज बना रहे सदा सबल
- विजय कुमार सिंह
सामने अड़े हुए अडिग अचल
ReplyDeleteओ मनुज बना रहे सदा सबल
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badhiya.. sundar
सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द विन्यास ....
शुभकामनायें ....
sundar sazi dhazi dharohar.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
सुंदर रचना
ReplyDeleteगुज़ारिश : !!..शायद ,मैं फेल हो गई.. !!
ध्वन्यात्मक शब्द चयन ने आनंदित कर दिया, वाह !!!!
ReplyDeleteवाह,क्या ध्वन्यात्मक व्यंजना है !
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