Friday, March 1, 2013

बादल दरिया पर बरसा हो..............अजीज अंसारी

बादल दरिया पर बरसा हो...

नई

बादल दरिया पर बरसा हो, ये भी तो हो सकता है
खेत हमारा सूख रहा हो, ये भी तो हो सकता है

मंजिल से वो दूर है अब तक, शायद रास्ता भूल गया
घबराकर घर लौट रहा हो, ये भी तो हो सकता है

ऊंची पुख्ता1 दीवारें हैं, कैदी कैसे भागेगा
जेल के अंदर से रास्ता हो, ये भी तो हो सकता है

दीप जला के भटके हुए को राह दिखाने वाला खुद
राह किसी की देख रहा हो, ये भी तो हो सकता है

दूर से देखो तो बस्ती में दिवाली, खुशहाली है
आग लगी तो शोर मचा हो, ये भी तो हो सकता है

उसके लबों2 से हमदर्दी के झरने बहते रहते हैं
दिल में नफरत का दरिया हो, ये भी तो हो सकता है

जाने कब से थमा हुआ है, बीच समन्दर का एक जहाज
धीरे-धीरे डूब रहा हो, ये भी तो हो सकता है

हुक्म4 हुआ है कांच का बरतन सर पर रखकर नाच 'अजीज'
बरतन में तेजाब5 भरा हो, ये भी तो हो सकता है। 

- अजीज अंसारी 

1. पक्की-मजबूत 2. होठों 3 जमीन-धरती-‍बिछात 4 आदेश 5. एसिड

2 comments:

  1. दीप जला के भटके हुए को राह दिखाने वाला खुद
    राह किसी की देख रहा हो, ये भी तो हो सकता है
    -------------------------------------------------------
    काफी सुन्दर ...

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
    सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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