Saturday, September 6, 2014

चाहत के हक़दार नहीं थे......................अमर मलंग





चाहत के हक़दार नहीं थे

उल्फ़त के बाज़ार नहीं थे


कैसे होती ये ग़ज़ल मुकम्मल,

शेर भी कुछ दमदार नहीं थे


बहुत तलाशा मिली न मंज़िल,

रास्ते भी हमवार नहीं थे


चमन की लूटी जिसने ख़ुशबू,

फूल ही है, वो ख़ार नहीं थे


गीत ख़शी के क्या गाते हम,

साथ हमारे वो यार नहीं थे


महफ़िल में जो घाव मिले हैं,

दुश्मन के वो वार नहीं थे


क्या हुआ जो पाई ठोकर.

अच्छे के तो आसार नहीं थे

-अमर मलंग

........... मधुरिमा से

3 comments:

  1. एक खूबशूरत ग़ज़ल पढ़वाने के लिए सादर आभार ,इन पंक्तिओं से स्वागत है इस रचना का

    दुश्मन था दमदार नहीं था
    साहिल था मझधार नहीं था
    रस्ते में थी बिछी केतकी
    रास्ता था पर हमवार नहीं था
    अज़ीज़ जौनपुरी

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  2. कैसे होती ये ग़ज़ल मुकम्मल,

    शेर भी कुछ दमदार नहीं थे .... बहुत खूब !

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  3. गीत ख़शी के क्या गाते हम,

    साथ हमारे वो यार नहीं थे bahut khoob ....

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