Saturday, September 13, 2014

गंगा की हिफाजत मजहब – ए – हिंद है.......................आलोक तिवारी






विष्णु के पा से ये चरम--सफ़ा हुआ
तीनों जहां की शान में सिवा ईजा
फ़ा हुआ ।

गंगा तेरी जबीं पे लिख्खा पयाम
--गम
आवाज
--दिलखराश पे है चरम--नम ।

गंगा की शोख तबियत से रश्क
--अदम हुआ
तेरे लव
--जू पे क्यू मजलिस--मातम हुआ ।

सुपुर्द
--खाक तुझसे जन्नत का सबब है
गंगा की निगेहबानी में मरना भी गजब है ।

अश्के
-हिमाला को आबे-हयात कहा
शक्ल
--गंगा में खां कायनात कहा ।

इसरार
--भागीरथ तू जहां में नुमूद हुई
तेरे मुकद्दम आब की दुनिया मुरीद हुई ।

काशी में शिव का मस्कन आबेकश्क है
सदके में शंकर के ये गंगा के अश्क है ।

दमें आखिर गंगेय का लबेतर किया
मां की ममता का तुने यू इजहार किया ।

मस्लत
--अदम ने तुझे तारतार किया
इस इज्ने
-आम ने दिल जार-जार किया ।

संग
--दिवार से तुझे महबूस कर रहे
बाखुदा लुटने का काम तेरे मानूस कर रहे ।

रुस्वा किया तुमको तेरे मेहरबान ने
सीना
-फिगार किया तेरे मेजबान ने ।

तपीरा
--गरल को तूने हिमानी किया
शिव के व्योमकेश को पानीपानी किया

आबे फिरदौस तु तेरी हस्ती अजीमतर
मल्लिका-
-जहां तू तेरे नक्श करीमतर ।

गुनाह-ए-बशर को गंगा ने सवाब किया
हमने मुकद्दम आब को जहराब किया ।

गंगा की हिफाजत मजहब
--हिंद है
तेरा अंदाज
--मोहब्बत मां के मानिंद है ।

मुर्दः रवा किया शौकआबे
-हयात में
अक्से फना क्यूं दिख रहा परतवे
-हयात में ।

-आलोक तिवारी


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2 comments:

  1. गंगा मज़हब से ऊपर है...जीवन दायनी अमृत...बेहतरीन ग़ज़ल...

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  2. गंगा की हिफाजत मजहब-ए-हिंद है
    तेरा अंदाज-ए-मोहब्बत मां के मानिंद है ।
    अक्षरशः सत्य !

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