Monday, August 26, 2013



कभी मोम बनकर पिघल गया कभी गिरते गिरते संभल गया
वो बन के लम्हा गुरेज़ का मेरे पास से निकल गया

उसे रोकता भी तो किस तरह वो सख्श इतना अजीब था !
कभी तड़प उठा मेरी आह से कभी अश्क से न पिघल सका

सरे-राह मे मिला वो अगर कभी तो नज़र चुरा के गुज़र गया
वो उतर गया मेरी आँख से मेरे दिल से क्यूँ न उतर सका

वो चला गया जहां छोड़ के मैं वहां से फिर ना पलट सका
वो संभल गया था 'फराज़' मगर मैं बिखर के ना सिमट सका

-अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़
जन्मः 14 जनवरी, 1931. कोहत, पाकिस्तान
मृत्युः 25 अगस्त, 2008. इस्लामाबाद, पाकिस्तान

ये रचना सौजन्यः रसरंग, दैनिक भास्कर से

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