चाँदी जैसा ताज है, सोने जैसे केश |
ऋतुयें अभिनन्दन करें, ऐसा मेरा देश ||
क्या खोकर पाया इसे, कितनी है अनमोल |
पूछो किसी शहीद से, आज़ादी का मोल ||
चंदा-सूरज से लगे, गाँधी और सुभाष |
आज़ादी का देश में, लाये नया प्रकाश ||
तब के नेता देश को, करा गये आज़ाद |
अब के नेता देश की, हिला रहे बुनियाद ||
केवल अपने देश के, नेता हुये स्वतंत्र |
जनता ही परतंत्र थी, जनता है परतंत्र ||
अंधे गद्दी पा गये, बहरे हुये महान |
हम कहते हैं खेत की, वे सुनते खलिहान ||
सावधान रहिये सदा, अब उनसे श्रीमान |
जो कोई पहने मिले, खादी का परिधान ||
इनकी टेढ़ी चाल को, नहीं सकोगे भाँप |
खादी पहने घूमते, इच्छाधारी साँप ||
मानचित्र पर लाख तुम, खींचा करो लकीर |
जिसका हिन्दुस्तान है, उसका है कश्मीर ||
चाहे बंगला देश हो, चाहे पाकिस्तान |
ये भी हिन्दुस्तान है, वो भी हिन्दुस्तान ||
नेता करें विकास का, बस्ती-बस्ती शोर |
देखा किसने ‘क़म्बरी’, वन में नाचा मोर ||
-अन्सार कम्बरी
बहुत खूब ....
ReplyDeleteबेहतरीन दोहे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज मंगलवार (13-08-2013) को "टोपी रे टोपी तेरा रंग कैसा ..." (चर्चा मंच-अंकः1236) पर भी होगा!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ,सटीक अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
behtreen dohe....
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन भावभिव्यक्ति ...:)
ReplyDeleteचाहे बंगला देश हो, चाहे पाकिस्तान |
ReplyDeleteये भी हिन्दुस्तान है, वो भी हिन्दुस्तान
......हाँ आखिर अलग हुआ तो क्या है तो अपने ही अंग .
बहुत बढ़िया .
बहुत ही सार्थक रचना।बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहम कहते हैं खेत की, वे सुनते खलिहान.....
ReplyDeleteवाह....बहुत खूब...बेहद सटीक अभिव्यक्ति...साभार....
आपकी यह रचना कल बुधवार (14-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...सटीक अभव्यिक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ..अद्भुत !
ReplyDeleteSundar ..sateek ... Lajawab dohe ... Mitti ki sugandh liya ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.. स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
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